सोनभद्र

राजस्व बंदी सुधाकर दुबे मौत प्रकरण : एसडीएम और तहसीलदार के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज

आनंद कुमार चौबे (संवाददाता)

सोनभद्र । सदर तहसील में बने राजस्व बंदी गृह में सुधाकर दुबे की मौत के मामले में आखिरकार प्रशासन ने तत्कालीन एसडीएम व तहसीलदार को सीधे जिम्मेदार मानते हुए शनिवार देर शाम रावर्ट्सगंज कोतवाली में गैरइरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया । प्रशासन की इस कार्यवाही से प्रशासनिक अमले में हड़कम्प मच गया।

आपको बतादें कि शनिवार को उच्च न्यायालय के आदेश के बाद कमिश्नर की अध्यक्षता में गठित जाँच टीम कलेक्ट्रेट पहुँची। जहां कमिश्नर, जिलाधिकारी मिर्जापुर और एसपी सोनभद्र के समक्ष तत्कालीन सदर एसडीएम और तहसीलदार का बयान दर्ज कराया किया गया था। वहीं उपस्थित नहीं होने के कारण पीड़ित पक्ष का बयान दर्ज नहीं हो सका था लेकिन देर शाम प्रशासन ने मामला दर्ज कर लिया।

पूरे मामले पर पीयूसीएल के प्रदेश संगठन सचिव और पीड़ित पक्ष के अधिवक्ता विकास शाक्य ने कहा कि यह संघर्ष और न्याय की अधूरी जीत है निष्पक्ष विवेचना और सजा दिलाए जाने तक का संघर्ष अभी बाकी है।

पीड़ित पक्ष के अधिवक्ता विकास शाक्य ने कहा कि विगत गत 19 मई को सदर तहसील के राजस्व लॉकअप में राजस्व बंदी सुधाकर दुबे की मौत प्रशासनिक लापरवाही और क्रूरता के कारण हुई थी। प्रशासनिक लापरवाही का इसके बड़ा और क्या प्रमाण मिलेगा कि पोस्टमार्टम कराए बगैर शव को जलवा दिया गया और साक्ष्यों एवं सबूतों के साथ छेड़छाड़ भी किया गया। मामला संज्ञान में आने पर मृतक के पुत्र नीरज दुबे के साथ न्याय दिलाने की लड़ाई शुरू हुई इसके साथ ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एवं माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में याचिका दाखिल किया गया। जहाँ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दस लाख रुपए मुआवजा और दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करने का निर्देश उत्तर प्रदेश सरकार को दिया था परंतु प्रशासन ने इसका कोई संज्ञान नहीं लिया। उच्च न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रमुख सचिव गृह और राजस्व सचिव उत्तर प्रदेश को मानवीय कृतियों और दुर्व्यवस्थाओं पर फटकार लगाते हुए जिला स्तर पर हुई मजिस्ट्रियल जांच को भी पूर्वाग्रह और दूषित बताते हुए जिलाधिकारी की भूमिका पर भी सवाल उठाया। संज्ञेय अपराध की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं किया गया पीड़ित परिवार को मुआवजा नवीनतम जांच की अद्यतन रिपोर्ट के साथ 3 फरवरी को पुनः तलब किया गया है। वहीं जाँच टीम पीड़ित परिजनों को बगैर सूचना दिए सोनभद्र पहुँची, इसलिए पीड़ितों का बयान नहीं हो सका। उन्होंने कहा कि लंबी लड़ाई के बाद तत्कालीन तहसीलदार बृजेश कुमार वर्मा एवं तत्कालीन सदर एसडीएम राजेश कुमार सिंह के विरुद्ध 304 भादवि का मुकदमा तो जिला प्रशासन ने दर्ज करा दिया परंतु वादी मुकदमा के निचले रैंक के अधिकारी से विवेचना कराई जा रही जो प्रतिस्थापित विधि व्यवस्था के विरुद्ध है।

वहीं भाजपा पूर्व जिलाध्यक्ष धर्मवीर तिवारी ने कहा कि हमारी सरकार पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए हमेशा से तत्पर है। राजस्व बंदी गृह में सुधाकर दुबे के मौत के मामले में अंततः प्रशासन ने गैर इरादतन हत्या में एफ़आईआर दर्ज करा दिया है। उन्होंने कहा कि शुरू से ही एसडीएम व तहसीलदार द्वारा अपनी गलती को छुपाने का प्रयास किया जा रहा था। जांच अधिकारी ने शुरू से ही परिवार पर दबाव बनाने का काम किया, सही तथ्यों को दबाया गया जिस नाते न्यायालय की शरण लेनी पड़ी। उन्होंने कहा कि सच्चाई यह थी कि राजस्व बंदी गृह में ही सुधाकर दुबे की मौत हो गई थी लेकिन तहसीलदार और एसडीएम लगातार यह कहते रहे कि परिवार वाले सुधाकर दुबे को लेकर भाग गए। डॉ0 धर्मवीर तिवारी ने कहा कि अगर कोई मामला दूसरा होता तो तहसीलदार एसडीएम जबरिया पोस्टमार्टम करा लेते हैं लेकिन इस मामले में क्यों छोड़ दिए, सवाल शुरू से खड़ा हो रहा था और मामले का सबूत खत्म करने के लिए जानबूझकर लाश को जला दिया गया उन्होंने कहा कि पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए हमारी सरकार निरंतर खड़ी है, इस मामले में कड़ी कार्रवाई भी होनी चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि एफआईआर के बाद एसडीएम तहसीलदार को निलंबित किया जाना चाहिए।

पूर्व जिलाध्यक्ष ने एक दूसरे मामले का जिक्र करते हुए कहा कि कुछ दिन पूर्व डा0 बनारसी पांडेय के लड़के की मौत धंधरौल बांध के पास हुई थी जिसमें नामजद एफआईआर दर्ज है लेकिन पुलिस आज तक दोषी को गिरफ्तार नहीं कर पाई है। आखिर ऐसे लापरवाह अफसरों पर कार्यवाही कर लगाम लगाना चाहिए। डॉ0 धर्मवीर तिवारी ने कहा सोनभद्र में किसी भी पीड़ित व्यक्ति के साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा। हमारी सरकार जीरो टॉलरेंस की सरकार है किसी भी कीमत पर लापरवाह अफसरों को नहीं बख्शा जाएगा।

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