क्यों विश्व प्रसिद्ध है गुप्त काशी में स्थापित शिव-पार्वती की दिव्य प्रतिमा, क्या है मंदिर की पूरी कहानी, पढ़ें यहां
गुप्त काशी का शिवद्वार मंदिर ऐतिहासिक महत्व वाला है। किंवदंतियों के अनुसार खेत में हल जोतते समय यह दिव्य प्रतिमा मोती महतो को प्राप्त हुई थी। उसने वहां पर मंदिर बनवाकर मूर्तियों को स्थापित कराया।

sonbhadra
8:15 AM, August 5, 2024
राजकुमार गुप्ता की रिपोर्ट
■ शिवद्वार में दर्शन मात्र से भक्तों के होते हैं कल्याण
■ सावन व महाशिवरात्रि को भक्तों का लगता है मेला
जिला मुख्यालय सोनभद्र से 39 मिमी किलोमीटर दूर तथा घोरावल तहसील मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर स्थित सतद्वारी गांव में शिवद्वार मंदिर ऐतिहासिक महत्व वाला है। किंवदंतियों के अनुसार खेत में हल जोतते समय यह दिव्य प्रतिमा मोती महतो को प्राप्त हुई थी। उसने वहां पर मंदिर बनवाकर मूर्तियों को स्थापित कराया।
देवों के देव कहलाने वाले महादेव के देश में कई ऐसे पावन धाम हैं, जहां पर सिर्फ दर्शन मात्र से ही शिव भक्तों के सारे दु:ख-दर्द दूर और मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। काशी से सटे गुप्त काशी सोनभद्र में भी ऐसा ही एक मंदिर है। खास बात यह कि यहां शिवलिंग की नहीं, साक्षात शिव-पार्वती की पूजा होती है। काले पत्थर से निर्मित शिव-पार्वती की ऐसी प्रतिमा है, जो अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगी। साढ़े चार फीट ऊंची लश्या शैली की प्रतिमा को सृजन का स्वरूप भी माना जाता है। यह प्रतिमा खेत में हल चलाने के दौरान जमीन में मिली थी। इस क्षेत्र के निवासी इस मंदिर को धार्मिक महत्व के कारण दूसरी काशी व गुप्त काशी के रूप में मानते हैं। यही कारण है कि यहां बड़ी तादाद में श्रद्धालु दर्शन-पूजन के लिए पहुंचते हैं। सावन के प्रत्येक सोमवार को तो हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
खेत मे मिली थी प्रतिमा
घोरावल तहसील मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर स्थित सतद्वारी गांव में शिवद्वार मंदिर ऐतिहासिक महत्व वाला है। किंवदंतियों के अनुसार खेत में हल जोतते समय यह दिव्य प्रतिमा मोती महतो को प्राप्त हुई थी। उसने वहां पर मंदिर बनवाकर मूर्तियों को स्थापित कराया। इतिहासकारों के मुताबिक यह प्रतिमा 11वीं सदी की है। यह मंदिर उस काल के शिल्प कौशल के बेहतरीन नमूने और शानदार कला का प्रदर्शन करता है।
दर्शन कर निहाल होते हैं भक्त
उमामहेश्वर की यह दिव्य प्रतिमा को देखने पर मन सम्मोहित हो जाता है और अपलक निहारने का मन करता है। त्रिनेत्रधारी की जटाओं, बाहों व गले में रुद्राक्ष, कानों में बिच्छुओं का कुंडल, गले में नागदेव का कंठहार, मस्तक पर अर्धचंद्र, हाथों में त्रिशूल व डमरू, जटाओं के बीच मां गंगा की दिव्य धारा, कटि प्रदेश में बाघंबर बेहद कुशलता व बारीकी से शिल्पकार द्वारा गढ़ा गया है। साढ़े चार फीट की काले पत्थर की इस मूर्ति में भगवान शिव के बाएं जंघे पर बैठी मां पार्वती के बाएं हाथ में दर्पण सुशोभित है। मां ने अपना बायां हाथ शिवशंकर के कंधे पर रखा है। प्रतिमा में भगवान शिव को चतुर्भुजी दर्शाया गया है। प्रतिमा में भगवान गणेश, कार्तिकेय व अन्य देवी देवताओं की नयनाभिराम मूर्तियां भी गढ़ी गई हैं। भगवान शिव व माता पार्वती के मंद मंद मुस्कान का आभास कराते पतले पतले अधर शिल्पकार की विलक्षण प्रतिभा को दर्शाते हैं। इस अद्वितीय मूर्ति को देखकर आभास होता है कि शिव पार्वती एक दूसरे के दिव्य व अनंत रूप को अपलक निहार रहे हैं।
11 लाेगों से शुरू हुई थी कांवड़ यात्रा, आज लाखो में आते हैं कांवड़िए
शिवद्वार में कांवड़ यात्रा का शुभारंभ सन 1986 में हुआ। नगर के कुछ प्रबुद्धजनों ने विचार विमर्श कर इस कांवड़ यात्रा का बीजारोपण किया। सर्वप्रथम डा सुग्रीव पांडेय बच्चा, वीरेंद्र कुमार उमर वैश्य, घनश्याम दास केडिया, द्वारिका प्रसाद खेमका, माता प्रसाद रौनियार, लवकुश उमर, विजय उमर, सरजू विश्वकर्मा, श्यामा विश्वकर्मा, सुनील उमर, हरिदास पटेल, जयजय लाला समेत ग्यारह श्रद्धालुओं ने मिर्ज़ापुर में गंगा नदी के बरिया घाट से रविवार को कांवड़ में गंगाजल भरकर 67 किलोमीटर की कठिन यात्रा पूर्ण कर श्रावण मास के अंतिम सोमवार को शिवद्वार स्थित शिवमंदिर में भगवान शिवशंकर का जलाभिषेक किया। दर्जन भर कांवड़ यात्रियों द्वारा शुरू की गई यह पवित्र यात्रा आज वटवृक्ष का रूप धारण कर चुकी है औऱ लाखो की संख्या में कांवड़िया भगवान आशुतोष का श्रावण मास में जलाभिषेक करते हैं। इसके बाद उसके अगले वर्ष कुछ और संख्या बढ़ी, आज कारवां बढ़ता चला गया। शिवद्वार में जलाभिषेक की शुरुआत करने वाले कांवरियों में अभी तक लगातार वीरेंद्र कुमार उमर वैश्य बाबा भोलेनाथ का जलाभिषेक करते आ रहे हैं। सन 1991 से सोनभद्र जिले के विजयगढ़ के रामसरोवर से कावर यात्रा शिवद्वार के लिए प्रारम्भ हुई। यह सिलसिला अब अगण्य हो गया है। श्रद्धालु कावर लेकर श्रावण माह मे जलाभिषेक कर रहे हैं।
कई राज्यों से आते हैं श्रद्धालु
शिवद्वार मंदिर के मुख्य पुजारी सुरेश गिरि व रामसूचित गिरी ने बताया कि यहां दर्शन पूजन करने वाले भक्तों की भगवान शिवशंकर हर मनोकामना पूर्ण करते हैं और मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।यहां उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों के साथ ही मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, दिल्ली समेत विभिन्न स्थानों से भक्तगण उमामहेश्वर की दिव्य प्रतिमा का दर्शन करने आते हैं।श्रावण मास में यहां एक महीने का मेला लगता है, जिसमें हजारों कांवड़िए भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं। महाशिवरात्रि और वसंत पंचमी के पर्व पर भी यहां परंपरागत मेला आयोजित किया जाता है।
सावन के तीसरे सोमवार पर शिवद्वार में मेले जैसा नजारा
श्रावण मास के तीसरे सोमवार को बड़ी संख्या में कांवरियों की भीड़ शिवद्वार में देखने को मिल रही । मेले जैसा नजारा है । पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के कई गांवो से मिलाकर हजारो की संख्या में कांवरिया भक्तों ने घोरावल कस्बे में आकर जोगिया कपड़े, कांवर व उसे सजाने की सामग्री, गंगा जल भरने के लिए लोटा, खाने पीने की सामग्री की खरीदारी की। घोरावल कस्बा कांवरिया परिधानों से पटा रहा। पिकअप जीप तथा अन्य साधनों से कांवरिया बोल बम बोल बम का जयकारा करते हुए नगर में प्रवेश किए। उसके बाद उन सभी ने आनन्दित होते हुए तेज स्वर में बोलबम का उदघोष करते हुए मीरजापुर के बरिया घाट से गंगाजल भरने की रवानगी की। कांवर ढ़ोने के लिए श्रद्धालु भक्तों में युवक युवतियां के अलावा महिलाएं व बच्चे भी कावर यात्रा के लिए उत्साहित दिखे। जोकि मीरजापुर शहर के बरिया घाट से गंगा जल भरकर घोरावल होते हुए शिवद्वार मंदिर तक लगभग 70 किलोमीटर की दूरी मन में श्रद्धा रखते हुए नंगे पांव कंधे पर कावर रख तय करा जाता है। शनिवार को पूरे दिन बरियाघाट पर पैर रखने तक की जगह नहीं थी। मीरजापुर शहर व देहात तथा सोनभद्र के घोरावल नगर व मध्यप्रदेश के कावरियों की भारी संख्या गंगा घाटों पर रही। अनुमान है कि सवा लाख के लगभग कांवरिए पवित्र गंगा जल भरकर कावर यात्रा पर निकले हैं। जो रविवार को घोरावल होते हुए शिवद्वार मंदिर मे जलाभिषेक व दर्शन पूजन करेंगे। रविवार को कावरियों की टोली घोरावल नगर पहुँची। जहां शिवालयों, सार्वजनिक स्थानो, विद्यालयों पर थके हुए कावरिया विश्राम करते रहे।
कांवरियों की सेवा के लिए कई स्थानो पर सामाजिक संगठनों द्वारा कांवरिया सेवा शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें कांवरियों को नि:शुल्क भोजन, जलपान एवं चिकित्सा की सुविधा मुहैया कराई गई। रविवार को सुबह से ही कावरियो के शिवद्वार पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। धुरकर से घोरावल तक पूरा क्षेत्र कांवरियों से पटा रहा।
कांवरियों की सेवा के लिए खड़देउर ग्राम में ओमर-उमर वैश्य युवजन संघ के तत्वावधान में कांवरिया सेवा शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें कांवरियों को निःशुल्क भोजन ,जलपान एवं चिकित्सा की सुविधा मुहैया कराई गई। इस अवसर पर बिरादरी के महासभा महामंत्री राकेश कुमार, कार्य समिति सदस्य अमरेश चंद, कृष्ण कुमार किसानू, क्षेत्रीय समिति अध्यक्ष नंदलाल उमर, रविंद्र कुमार, युवजन संघ अध्यक्ष अरविंद कुमार ,दीपक कुमार, शनि शंकर, श्याम जी ,राहुल कुमार ,ऋषभ कुमार ,राजीव कुमार , कृष्ण चन्द्र, अवधेश कुमार ,रवि कुमार सहित बिरादरी के लोग सेवा भाव से लगे रहे।