Sonbhadra News : पुत्र की लम्बी उम्र हेतु महिलाओं ने रखा जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत
जीवित्पुत्रिका का यह व्रत श्रद्धा व पुत्र की मंगलकामना हेतु मनाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है जिसके

सोनभद्र
9:17 PM, September 14, 2025
धर्मेन्द्र गुप्ता (संवाददाता)
विंढमगंज (सोनभद्र)। आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जीवित पुत्रिका का ब्रत पर्व के रूप में मनाते हैं। इस व्रत को करने से पुत्र शोक नहीं होता।इस व्रत का स्त्री समाज में बहुत ही महत्व है। इस दिन सूर्य नारायण की पूजा की जाती है। आज घरों ,मंदिरों में व्रती महिलाओं ने पूजन -अर्चन कर अपने पुत्र को दीर्घायु होने की मंगल कामना की।
एक मान्यता के अनुसार– गन्धर्वों के राजकुमार का नाम जीमूतवाहन बडे उदार और परोपकारी थे। वहीं पर उनका मलयवती नामक राजकन्या से विवाह हो गया।एक दिन जब वन में भ्रमण करते हुए जीमूतवाहन काफी आगे चले गए, तब उन्हें एक वृद्धा विलाप करते हुए दिखी।इनके पूछने पर वृद्धा ने रोते हुए बताया कि मैं नागवंश की स्त्री हूं और मुझे एक ही पुत्र है। पक्षिराज गरुड के समक्ष नागों ने उन्हें प्रतिदिन भक्षण हेतु एक नाग सौंपने की प्रतिज्ञा की हुई है।आज मेरे पुत्र शंखचूड की बलि का दिन है।जीमूतवाहन ने वृद्धा को आश्वस्त करते हुए कहा कि डरो मत, मैं तुम्हारे पुत्र के प्राणों की रक्षा करूंगा। उसके बजाय मैं स्वयं अपने आपको उसके लाल कपडे में ढंककर बलि के लिए तैयार हो जाऊंगा।इतना कहकर जीमूतवाहन ने शंखचूड के हाथ से लाल कपडा ले लिया और वे उसे लपेटकर बलि के लिए तैयार को गया। उसी समय गरुड आए और वे लाल कपडे में ढंके जीमूतवाहन को पंजे में दबोचकर पहाड पर जाकर बैठ गए।अपने चंगुल में फसें जीव को शांत देखकर गरुडजी बडे आश्चर्य में पड गए। उन्होंने जीमूतवाहन से उनका परिचय पूछा। जीमूतवाहन ने सारा घटनाएं बताई। गरुड जी उनकी बहादुरी और दूसरे की प्राण-रक्षा करने में स्वयं का बलिदान देने की हिम्मत से बहुत प्रभावित हुए। प्रसन्न होकर गरुड जी ने उनको जीवन-दान दे दिया तथा नागों की बलि न लेने का वरदान भी दे दिया।
इस प्रकार जीमूतवाहन के अदम्य साहस से नाग-जाति की रक्षा हुई और तबसे पुत्र की सुरक्षा हेतु जीमूतवाहन की पूजा की प्रथा शुरू हुई जिसे जीवित्पुत्रिका के रूप में आज भी मनाते है।