Sonbhadra News : विलुप्त होती जा रही हल-बैल की किसानी की परंपरा
मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती… यह गीत सुनते ही मन मस्तिष्क में एक छाया उभर कर आती है और वह होती है खेत में हल और बैलों के साथ काम करते हुए किसान, जो अपने अथक परिश्रम.....

हल-बैल से खेत जोतता एक किसान.......
sonbhadra
10:36 AM, July 8, 2025
आनन्द कुमार चौबे (संवाददाता)
• पारंपरिक खेती से मिट्टी की गुणवत्ता रहती है बरकरार
सोनभद्र । मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती… यह गीत सुनते ही मन मस्तिष्क में एक छाया उभर कर आती है और वह होती है खेत में हल और बैलों के साथ काम करते हुए किसान, जो अपने अथक परिश्रम और लगन से मिट्टी से अनाज उगा कर सभी का पेट भरते हैं लेकिन अब किसानी व खेती के तौर-तरीकों में बदलाव आ गया है। तकनीक आधारित खेती ने किसानी को काफी बदल दिया है। पारंपरिक तरीके की खेती शायद अब अपने अंतिम दौर में है, लगातार खत्म होती जा रही है। नयी पीढ़ी के किसान हल-बैल के सहारे खेती करना नहीं पसंद करते हैं। हालांकि हल-बैल से खेती में मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है, ऐसा किसी अन्य प्रकार से संभव नहीं होता है।
टेक्नोलॉजी से आया बदलाव -
टेक्नोलॉजी ने खेती किसानी को काफी बदल दिया है। ट्रैक्टर से अब चंद घंटे में कई एकड़ जमीन की जुताई करना हो या मशीनों के माध्यम से कटाई मड़ाई आदि की प्रक्रिया पूरी करनी हो यह सब कुछ बहुत तेजी के साथ हो जाता है। मशीनों ने किसानों को एडवांस बना दिया है। वह खेती में टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर समय बचाते हैं। अब तो मशीनों के कई एडवांस वर्जन भी आने लगे हैं। अकेले जुताई के लिए ही 4 से अधिक यंत्र किसानों के पास पहुंच चुके हैं, जिसमें कल्टीवेटर, रोटावेटर, हैरो जैसे हल मिट्टी की जुताई में काम आते हैं।
अभी भी हो रही पारंपरिक खेती -
जनपद सोनभद्र में आज भी कई गांवों में किसान पारंपरिक तरीके से ही दो बैलों की जोड़ी और हल के साथ खेतों की जुताई करते हैं। अन्नदाता की यह परंपरा शायद अपने अंतिम दौर में है। पारंपरिक खेती का यह स्वरूप अब विलुप्त होता जा रहा है। नई पीढ़ी के किसान अब बैल और हल के माध्यम से काम नहीं करते क्योंकि इसमें बहुत ही अधिक समय लगता है।
छोटे किसान पारंपरिक खेती के तरीके को रख रहे जीवित -
किसान सिद्धि विश्वकर्मा, प्रेम, मुराली, बहादुर, रामधनी यादव समेत अन्य किसान बताते हैं कि "छोटी जोत में ट्रैक्टर के माध्यम से जुताई संभव नहीं होती है। जिन किसानों के पास छोटी खेती है वैसे किसानों को पारंपरिक रूप से ही खेत की जुताई करनी पड़ती है। कई किसानों ने बताया कि बैल व हल से जुताई करने पर मिट्टी की गुणवत्ता कायम रहती है। ट्रैक्टर से जुताई करने पर मिट्टी में पाये जाने वाले केचुए खत्म हो जाते हैं, जो हल-बैल से जुताई करने पर बचे रहते हैं। बैल और हल के माध्यम से जुताई किये गये खेत का उत्पादन में भी फर्क होता है। हम मिट्टी से जुड़े हैं, मिट्टी पर रहते हैं, मिट्टी से ही जीवन यापन होता है और अंतिम समय भी मिट्टी में मिलते हैं। ऐसे में हम अपनी पारंपरिक खेती को आगे बढ़ाते हैं, जो हमारे पूर्वज करते रहे थे।"
किसानों की भी होनी चाहिए कर्जमाफी -
किसानों ने कहा कि "हम छोटे किसानों के बारे में सरकार को और सोचना चाहिये। बड़े-बड़े उद्यमियों और अमीरों के कर्ज माफ कर दिये जाते हैं लेकिन किसान का छोटा सा कर्ज भी माफ करने पर हो-हल्ला होने लगता है।"



