Sonbhadra News : श्रमिकों के सुरक्षा नियमों को कर दरकिनार, खनन कार्य कराते हैं पेटीदार
ओबरा के बिल्ली मारकुंडी में कृष्णा माइनिंग वर्क्स की खदान में हुई दुर्घटना के बाद 70 घंटे तक चले ऑपरेशन जिंदगी में जहाँ 7 शव बरामद किए गए वहीं अन्य श्रमिकों की तलाश के लिए प्रशासन को खासी मशक्कत...

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4:17 AM, November 20, 2025
आनन्द कुमार चौबे (संवाददाता)
सोनभद्र । ओबरा के बिल्ली मारकुंडी में कृष्णा माइनिंग वर्क्स की खदान में हुई दुर्घटना के बाद 70 घंटे तक चले ऑपरेशन जिंदगी में जहाँ 7 शव बरामद किए गए वहीं अन्य श्रमिकों की तलाश के लिए प्रशासन को खासी मशक्कत का सामना करना पड़ा। मलबे में दबे श्रमिकों के आंकड़ों को लेकर प्रशासन की काफ़ी किरकिरी भी हो रही थी वहीं राहत व बचाव कार्य में जुटी टीम को भी अन्य श्रमिकों को ढूंढ़ने के लिए परेशान होना पड़ा। ऐसे में यदि वहां काम करने वाले मजदूरों की सही संख्या, नाम या अन्य ब्योरा होता तो श्रमिकों की तलाश और आसान हो सकती थी। वहीं काफी खोजबीन के बाद पांच मजदूरों के घायल होने और दो के बाल-बाल बच जाने की पुष्टि के बाद प्रशासन ने राहत की सांस ली। वहीं इस पुरे घटनाक्रम में खदान में काम करने वाले श्रमिकों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए साथ ही खदान में काम करने वाले मजदूरों के रिकॉर्ड को भी लेकर प्रश्न चिन्ह खड़े हो गए।
मजदूरों की सुरक्षा कभी भी खदान मालिकों की नहीं होती प्राथमिकता -
ऐसे में इन सवालों का जवाब एक ही नजर आता है कि कानूनी पेंच से बचने के लिए कभी भी खदान में काम करने वाले श्रमिकों की सुरक्षा कभी भी मालिकों की प्राथमिकता में नहीं रही है। इससे बचाव के लिए पेटीदारों से खनन का कार्य कराया जाता है, पेटीदार ही मजदूरों की व्यवस्था करते हैं और खदान मालिक की मंशा के अनुरूप खनन कराकर उनकी मजदूरी देते हैं। यहीं कारण है कि ज्यादातर खदानाें में मजदूरों को कोई ब्योरा ही नहीं होता। दिखावे के लिए हाजिरी रजिस्टर सहित अन्य दस्तावेज होते हैं, लेकिन इन पर खदान मालिकों की मर्जी से ही विवरण दर्ज होते हैं।
बगैर सुरक्षा उपकरण के ही काम करते है मजदूर -
पत्थर की खदानों में खनन का कार्य बेहद जोखिम भरा है। इसमें काम कराने के लिए तमाम सुरक्षा मानकों को पूरा करना होता है। मजदूरों को वह सारी सुविधाएं उपलब्ध करानी होती हैं। काम करने वाले मजदूरों का पूरा ब्योरा भी अंकित होना चाहिए, जिससे कभी कोई विवाद या घटना होने पर रिकॉर्ड से मिलान कर वस्तु स्थिति का पता लगाया जा सके। खदान क्षेत्र में आने-जाने का भी रिकाॅर्ड रखना होता है। पत्थर खदानों में इनमें से ज्यादातर मानक पूरे नहीं होते। खदान संचालक सिर्फ अपने मुनाफे से मतलब रखते हैं। शेष जिम्मेदारियों के लिए पेटीदार नियुक्त किए जाते हैं। यहीं पेटीदार ही मजदूर जुटाते हैं, उनसे खनन कराते हैं और उनका हिसाब करते हैं। अक्सर वह बिना सुरक्षा उपकरण के ही मजदूरों को खदान में ले जाकर कार्य कराते हैं। कितने मजदूर आए-गए, इसका विवरण भी पेटीदार ही रखते हैं।
हादसे में बचे मजदूर ने सुनाई हकीकत -
हादसे में बचे पनारी गांव निवासी लालता प्रसाद ने दावा किया कि "खदान में उस दिन मेरे साथ के भी आठ लोग काम कर रहे थे। इसी बीच पहाड़ का हिस्सा गिर गया। छह-सात लोग उसी में दब गए। पांच लोग घायल हो गए। मेरे साथ एक और श्रमिक बच गया। हम सभी सात लोग किसी तरह ऊपर आए। ठेकेदार पांचों घायलों अनपरा के कुलडोमरी निवासी राम सिंह, नेहरू, अमर सिंह, संतलाल और जय सिंह गोड़ को लेकर इलाज कराने राबर्ट्सगंज चला गया और हम दोनों भी वहां से निकल गए।"
श्रम विभाग में भी पंजीकृत नहीं होते खनन कार्य में लगे मजदूर -
खदानों पर काम करते समय सुरक्षा के लिहाज से इन श्रमिकों का पंजीयन जरूरी है और इसके लिए विभाग ने नियम भी बना रखे हैं, लेकिन विभागीय अधिकारियों ने आज तक इन खदानों पर श्रमिकों के पंजीयन को लेकर कभी भी सख्ती नहीं दिखाई है। श्रमिकों का पंजीयन किए बिना उन्हें खदानों पर काम कराना नियमों के विरुद्ध है। इसके बावजूद जिले की सैकड़ों खदानों पर बिना पंजीयन के श्रमिक अपनी जान जोखिम में डालकर काम करते हैं।



