Sonbhadra news : रोजाना बड़ी संख्या में मासूमों का भीख मांगना अब एक आम दृश्य बन चुका है, जिम्मेदार मौन
हनुमान मंदिर के सामने रोजाना बड़ी संख्या में मासूमों का भीख मांगना अब एक आम दृश्य बन चुका है, जो सामाजिक व्यवस्था और प्रशासनिक दावों की पोल खोलने के लिए काफी है।

sonbhadra
7:03 PM, December 16, 2025
घनश्याम पांडेय (संवाददाता)
ओबरा । सोनभद्र जनपद के औद्योगिक नगर ओबरा के मुख्य चौराहे पर स्थित हनुमान मंदिर के सामने रोजाना बड़ी संख्या में मासूमों का भीख मांगना अब एक आम दृश्य बन चुका है, जो सामाजिक व्यवस्था और प्रशासनिक दावों की पोल खोलने के लिए काफी है। आस्था के केंद्र इस मंदिर पर जहाँ भक्त शीश झुकाने आते हैं, वहीं बाहर बैठे 3 से 13 वर्ष के लगभग 20 से 25 बच्चे बुनियादी सुविधाओं से वंचित होकर भीख मांगकर जीवन यापन करने को मजबूर हैं।
जांच-पड़ताल में सामने आया है कि ये नौनिहाल नगर के भलुआ टोला के निवासी हैं। इनका पारिवारिक और सामाजिक स्तर अत्यंत दयनीय है। इनमें से कई बच्चों के सिर से माता-पिता का साया उठ चुका है, तो कई के माता-पिता कबाड़ बीनकर किसी तरह गुजर-बसर करते हैं। गरीबी और अशिक्षा के कारण ये बच्चे बचपन से ही शिक्षा से दूर हो गए हैं और समाज में इनका अनादर हो रहा है। विशेषकर मंगलवार और शनिवार को जब मंदिर में भीड़ होती है, तो ये बच्चे प्रसाद और चंद सिक्कों की आस में कतारों में और आसपास मंडराते नजर आते हैं। बाकी दिनों में ये पूरे नगर में घूम-घूम कर भिक्षावृत्ति करते हैं।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यह दृश्य नगर के सबसे प्रमुख चौराहे का है, जहाँ से हर शाम जिले और शासन-प्रशासन के बड़े अधिकारियों का आवागमन होता है। बावजूद इसके, इन बच्चों की दुर्दशा और बदहाल स्थिति न तो शासन को दिखाई देती है और न ही प्रशासन को। सोनभद्र जैसा अति पिछड़ा और आदिवासी बाहुल्य जिला, जहाँ सरकार गरीबी उन्मूलन और बाल कल्याण के लिए विशेष दावे करती है, वहाँ मुख्य चौराहे पर यह स्थिति प्रशासनिक उत्तरदायित्व और सामाजिक न्याय मंत्रालय की नियमावली के खुले उल्लंघन का प्रमाण है।
नगर का प्रबुद्ध वर्ग और आम जनमानस जब इन बच्चों को देखता है, तो मन में यही सवाल उठता है कि क्या इनके बेहतर भविष्य के लिए शासन-प्रशासन की कोई जिम्मेदारी नहीं है? यह दृश्य कतई शोभनीय नहीं है और समाज के लिए चिंता का विषय है। संविधान और कानून में बाल अधिकारों को लेकर तमाम व्यवस्थाएं होने के बाद भी ओबरा में बचपन का यूँ सड़क पर होना, सोई हुई प्रशासनिक व्यवस्था को जगाने और सवाल पूछने के लिए विवश करता है।



