Jitiya 2025 : संतान की लम्बी उम्र के लिए माताएं आज रखेंगी निर्जला व्रत
हिंदू धर्म में हर व्रत और त्योहार का गहरा आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व है। इन्हीं पर्वों में से एक है जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे संतान की लंबी आयु, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए माताएं पूरे भाव और....

दुकान पर जियुतीया की खरीदारी करती महिलाएं.....
sonbhadra
6:49 AM, September 14, 2025
आनन्द कुमार चौबे (संवाददाता)
सोनभद्र । हिंदू धर्म में हर व्रत और त्योहार का गहरा आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व है। इन्हीं पर्वों में से एक है जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे संतान की लंबी आयु, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए माताएं पूरे भाव और निष्ठा से करती हैं। इसे जितिया व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं बल्कि मां की ममता, त्याग और संकल्प का अद्भुत संगम है। मां की ममता का संकल्प और संतान की लंबी उम्र की कामना का पर्व आज निर्जला उपवास के साथ मनाया जाएगा।
माताएं 24 घंटे निर्जला उपवास रह करती हैं संतान के लम्बी उम्र की कामना -
बेटे की लंबी आयु के लिए रखा जाने वाला व्रत जीवित्पुत्रिका आज जनपद में मनाया जाएगा। व्रत के दौरान पुत्र की दीर्घायु के लिए माताएं निर्जला उपवास और पूजा-अर्चना करेंगी। आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माताओं द्वारा अपनी संतान की आयु, आरोग्य तथा कल्याण के लिए इस व्रत को किया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत को जीतिया या जीउतिया के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक रूप में जीवित्पुत्रिका व्रत का विशेष महत्व रहा है। सोनभद्र में बड़ी संख्या में माताएं यह व्रत करती हैं। व्रत के दूसरे दिन भी माताएं देर तक जल अथवा अन्न ग्रहण नहीं करतीं। जीवित्पुत्रिका व्रत की खरीदारी को लेकर मंगलवार को नगर में दुकानों पर महिलाओं की भीड़ रही। इसको लेकर बाजारों में काफी चहल-पहल रही। व्रत से पूर्व तोरई की सब्जी खाने की प्रथा के चलते उसके दाम आसमान छू रहे थे। खरीदारी करने के लिए दुकानों पर महिलाओं की भीड़ रही।
बाजारों में तोरई और जियुतीया की रही मांग -
दरअसल, आज को महिलाएं जीवितपुत्रिका का व्रत रखेंगी। महिलाएं पूरे दिन निराजल व्रत रहकर अपने पुत्र की लंबी उम्र की कामना करती हैं। इसके लिए पूजन सामग्री के साथ ही चीनी से बनी मिठाई का बहुत ही महत्व होता है। इस खरीदारी को लेकर दुकानदारों द्वारा काफी पहले से तैयारियों की गई थी। उनके द्वारा लालरंग के धागे में जीयुतिया को पिरोकर पहले से ही तैयार कर लिया गया था। शनिवार को दुकानों पर खरीदारी के लिए महिलाओं की भीड़ उमड़ी रही। सबसे ज्यादा खरीदारी तोरई व लालरंग के धागे की हुई। आम दिनों से अपेक्षा शनिवार को तोरई की अधिक दाम में बिक्री हुई। इसके बाद भी बहुत से लोग तोरई के लिए भटकते रहे। जीवितपुत्रिका व्रत तोरई खाकर ही महिलाएं दूसरे दिन इस व्रत का पारण करती हैं।
ये है शुभ मुहूर्त -
आचार्य शिव कुमार शास्त्री ने बताया कि अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यह व्रत रखा जाता है। इस वर्ष अष्टमी तिथि 14 सितंबर, रविवार को प्रातः 8:51 बजे से प्रारंभ होकर 15 सितंबर, सोमवार को प्रातः 5:36 बजे तक रहेगी। रविवार को सूर्योदय से पूर्व महिलाएं ओठगन की रस्म निभाकर व्रत आरंभ करती हैं और सोमवार को प्रातः 6:27 बजे के बाद व्रत का पारण करती हैं।
चील और सियारिन की कथा है प्रसिद्ध -
जितिया व्रत से जुड़ी चील और सियारिन की कथा विशेष रूप से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि चील ने नियमपूर्वक व्रत किया और अगले जन्म में शीलावती बनी, जिसे सात पुत्रों का सुख मिला। जबकि सियारिन ने छल किया और कर्पूरावतिका बनी, जिसे संतान सुख नहीं मिला। बाद में भगवान जीमूतवाहन की कृपा और इस व्रत के प्रभाव से उसे भी पुत्र प्राप्त हुआ। तभी से यह व्रत और अधिक पूजनीय हो गया।
भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं व्रती माताएं -
व्रत के दिन महिलाएं आंगन में गोबर से पोखर या नदी का प्रतीक बनाकर पाकड़ और कुश की डाली रोपती हैं और भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। दिनभर फल, पकवान और भजन-कीर्तन से वातावरण भक्तिमय रहता है।
माँ और संतान के बीच अटूट प्रेम और विश्वास का उत्सव है जीवितपुत्रिका व्रत -
जीवित्पुत्रिका व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह मां और संतान के बीच अटूट प्रेम और विश्वास का उत्सव है। मां की निर्जला तपस्या संतान के मंगलमय जीवन की रक्षा कवच बन जाती है।