सोनभद्र

स्वामी विवेकानंद जयंती को अन्तर्राष्ट्रीय युवा चेतना दिवस के रूप में मनाया गया

राजेश कुमार (संवाददाता)

बभनी । स्वामी विवेकानन्द जयन्ती के अवसर पर गुरुवार को विचार गोष्टी व सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन जनता महाविद्यालय के प्रांगण में किया गया।एकल अभियान गांव में जन जागरूकता एवं घर घर शिक्षा को लेकर अभियान चला रहा है।

गुरुवार को जनता महाविद्यालय के प्रांगण में अंचल रेणुकूट के तत्वावधान में एकल अभियान के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय युवा चेतना दिवस स्वामी विवेकानंद जयंती के अवसर पर मनाया गया।इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व विधायक रूबी प्रसाद तथा विशिष्ट अतिथि खंड प्रचारक गगनजी ने भारत माता और स्वामी विवेकानंद के चित्र के सामने दीप प्रज्ज्वलित एवं पुष्प चढ़ाकर किया। कार्यक्रम ओम् एवं गायत्री मंत्र के साथ कार्यक्रम शुरूआत किया गया।इसके बाद वक्ताओं ने अपने अपने विचार प्रस्तुत किया।एकल अभियान अंचल रेनुकूट के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य,प्राथमिक शिक्षा जन जन तक पहुंचे ,सभी लोग निरोग रहे, पौष्टिक आहार ,क्षेत्र से पलायन को रोकना,सहित तमाम मुद्दों को लेकर चर्चा किया गया।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दुद्धी पूर्व विधायक रूबी प्रसाद ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द जी का सपना था कि यदि बच्चा विद्यालय तक नही पहुँच सकता तो विद्यालय को बच्चों तक पहुँचाना होगा।उन्होंने कहा उठो,जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये।उन्ही के विचारों को लेकर एकल अभियान सन 1989 से झारखण्ड प्रान्त धनवाद जिले के 60 गाँव से प्रारम्भ हुआ जो आज वर्तमान समय में एक लाख गाँव में संस्कार युक्त शिक्षा के मध्यम से गाँव के सर्वागिण विकास में अहम योगदान दे रहा है उसी कड़ी में रेनुकूट के 380 सुदूर ग्रामिण बस्ती में एकल विद्यालय संचालित हो रहे है,विगत वर्षों की भाती इस वर्ष भी स्वामी विवेकानन्द जी के जयन्ती को अन्तर्राष्ट्रीय एकल सप्ताह के रूप में विभिन्न कार्यक्रम के माध्यम से मनाया जा रहा है।कार्यक्रम में मुख्य रूप से,नितेश जायसवाल,सुदामाजी, राजेन्द्र प्रसाद, रामकुमार, दिनेश जायसवाल,सुमन देवी, राजेश कुमार,विजय कुमार सहित सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।

कार्यक्रम में विलुप्त हो रही कठपुतली कार्यक्रम का आयोजन किया गया।इस आयोजन में नशा मुक्ति,एवं शिक्षा सबको जरूरी जैसे जागरूकता कार्यक्रम कठपुतली के माध्यम से प्रस्तुत किया गया।बभनी क्षेत्र में लालकेश कुशवाहा और उनकी टीम इस कला को आज भी जीवित रखे हुए हैं। जिसको बच्चों और उपस्थित लोगों ने खुब आनन्द लिया।

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