Sonbhadra News:आधुनिकता की दौड़ में विलुप्त होती जा रही पारम्परिक होली गायन की परम्परा, सेवानिवृत हिंदी विभागाध्यक्ष ने जतायी चिंता
आधुनिकता ने त्यौहारों की पुरानी परम्परा को काफ़ी पीछे छोड़ दिया हैं। अब होली में वो पुरानी उल्लास नजर नहीं आती। ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो होली एक दिन का औपचारिकता पूरी करने वाला त्योहार बनकर रह गया है।

होली गायन की पुरानी परम्परा
Whatsapp चैनल फॉलो करे !रमेश यादव (संवाददाता )
दुद्धी, सोनभद्र। आधुनिकता ने त्यौहारों की पुरानी परम्परा को काफ़ी पीछे छोड़ दिया हैं। अब होली में वो पुरानी उल्लास नजर नहीं आती। ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो होली एक दिन का औपचारिकता पूरी करने वाला त्योहार बनकर रह गया है।पहले बसंत पंचमी से ही ढोल मजीरा एवं मानर बजना शुरू हो जाया करता था। बड़ी संख्या में लोग फाग गीत गाने जुटा करते थे। चारों ओर फाग गवैयों का मस्ती भरा शोर पारंपरिक लोकगीत के माध्यम से त्योहार के उत्साह को दोगुना कर देता था। अब समय के साथ फाग गीतों की परंपरा ही विलुप्त होती जा रही है।होली आपसी भाईचारे वाला त्यौहार हुआ करता था, वर्तमान समय मे हुड़दंग अश्लीलता और नशे ने अपनी जगह बना ली है। लोक परंपरा और त्योहारों को संजोने का उत्तरदायित्व हम सभी का है। भविष्य में होली जैसे त्योहार इतिहास बनकर रह जाएंगे। खोती फाग की फनकार और मानर एवं नगाड़े की थाप को लेकर हमने बीआरडी राजकीय पीजी कॉलेज दुद्धी के सेवानिवृत हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. रामजीत यादव से इस विषय पर बातचीत की तो उन्होंने विलुप्त होती होली गायन की परम्परा को लेकर चिंता जाहिर करते हुए बताया कि - बसंतपंचमी से शुरू होता था फाग गायन- पहले बसंत पंचमी के दिन से ही फाग गायन का दौर शुरू हो जाता था।आसपास के लोग अपने सभी द्वेषों को मिटाकर एक जगह बैठ फाग गीत गया करते थे। इससे आपसी भाईचारा मजूबत होता था। टोलिया बना कर जगह-जगह मानर और नगाड़े की थाप पर होली गीत गाते लोग दिख जाया करते थे। आज के बदलते दौर में अब वो दृश्य कहीं देखने को नही मिलता।
अब लोग पारम्परिक फाग गीत नहीं गाते-
लोग अपनी परंपरा को भुलाते जा रहे है। होली को महज गिनती के दिन ही बचे हुए है, लेकिन बिल्कुल भी नहीं लग रहा कि होली का त्योहार नजदीक है। उन्होंने कहा कि लोक त्योहार और गीतों को खत्म होने से बचाने के लिए सरकार को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए। अगर बात करे फाग गीतों की तो इसकी प्रतियोगता करवा बढ़वा दिया जा सकता है.
लुप्त हो रही प्राचीन परंपराएं -
बीआरडी राजकीय पीजी कॉलेज के सेवानिवृत हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ.रामजीत यादव का कहना है कि प्रचीन परंपरा विलुप्त होती जा रही है।इसका मुख्य कारण तेजी से बदलता समाजिक परिवेश एवं लोगों की हाईटेक होती रहन -सहन है तो वहीं कोरोना के दौर में लोगो को संक्रमण से बचाव के लिए सामाजिक दूरियां रखना पड़ा था।इस दूरी ने समाज मे लोगों के बीच बहुत ज्यादा दूरियां पैदा कर दी। ग्रामीण इलाकों में होली गीत गायन का बहुत ज्यादा महत्व हुआ करता था, लेकिन वहां भी अब डीजे और फिल्मी गानों ने अपनी जगह बना ली है जो चिंतनीय है।

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