Sonbhadra News : 'मौत की खदान' में हुई त्रासदी ने खोली खनन माफियाओं और प्रशासनिक सांठगांठ की पोल
जिले की ओबरा थाना क्षेत्र अंतर्गत बिल्ली मारकुंडी स्थित मेसर्स कृष्णा माइनिंग खदान हादसे में मजदूरों की मौत की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। अब तक कुल सात मजदूरों की मौत की पुष्टि हो चुकी है.......

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12:11 PM, November 18, 2025
आनन्द कुमार चौबे (संवाददाता)
सोनभद्र । जिले की ओबरा थाना क्षेत्र अंतर्गत बिल्ली मारकुंडी स्थित मेसर्स कृष्णा माइनिंग खदान हादसे में मजदूरों की मौत की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। अब तक कुल सात मजदूरों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। इस भीषण हादसे ने न सिर्फ जिले को हिलाकर रख दिया, बल्कि सालों से चले आ रहे खनन माफिया और खनन विभाग की सांठगांठ की परतें भी खोल दीं। बताते चलें कि ओबरा थाना क्षेत्र के बिल्ली मारकुंडी खदान त्रासदी प्रशासन की लापरवाही उजागर कर दी है। खदान में जहां नियमों के तहत अधिकतम 30 फीट से गहराई में खुदाई की अनुमति भी नहीं थी, वहां हैरतअंगेज तरीके से 150 फीट से अधिक गहराई तक खोद डाला गया, जो अवैध खनन नेटवर्क और सिस्टम की घोर विफलता का प्रमाण है, जिसमें माफिया और विभाग की चुप्पी ने कई मजदूरों की जान ले ली।
भयावह मंजर की कहानी, प्रत्यक्षदर्शी की जुबानी -
प्रत्यक्षदर्शी छोटू की माने तो, 15 नवंबर को कुल 19 मजदूर खदान में सुबह 11 बजे से काम कर रहे थे, कई घंटे से मशीनें बिना रुके चल रही थीं। गहराई बढ़ चुकी थी और दीवारों पर दरारें दिखने लगी थीं, लेकिन मजदूरों की चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया गया। दोपहर तकरीबन 2 से 2.30 बजे अचानक जोरदार धमाके के साथ खदान का एक बड़ा हिस्सा ढह गया, जिससे खदान के उस हिस्से में अंधेरा छा गया और पल भर में कई मजदूर मलबे के नीचे दब गए। वहाँ सिर्फ धूल का गुबार और मजदूरों के चीखों की आवाजें सुनाई दे रही थी। उसके दो भाई भी उसी मलबे के नीचे दब गए। वह बाथरूम करने बाहर की तरफ गए था इसलिए बच गया, उसने इसकी सुचना तत्काल अपने मालिक को दी। वहाँ पहुंचे मालिक ने गंभीर रूप से घायल तीन मजदूरों को वहाँ से निकाल कर ले गए जबकि अन्य मजदूरों कई टन मलबे के नीचे दबे रहे।
जिला प्रशासन के नियमानुसार खनन के दावों की खुली पोल -
मिली जानकरी के अनुसार, मौत की यह खदान साल 2016 से सक्रिय थी और यहाँ लगातार सुरक्षा मानकों को ताक पर रखकर संचालन जारी था। जिला प्रशासन व खनन विभाग की अनदेखी और खनन माफियाओं के सांठगांठ ने इस अवैध तंत्र को मजबूत बना दिया था। जिससे खनन माफिया बेरोकटोक मौत के इस खदान में लगातार खनन कार्य जारी रखे रहे। वहीं कुछ समय बाद यह खदान एक पेटी ठेकेदार चलाने लगा, जिसके बाद पैसे, हिस्सेदारी और गैरकानूनी खनन का खेल और गहरा होता चला गया।
अब तक सात शव हुए बरामद -
शुरुआती जांच में संकेत मिले हैं कि सालों से इस खदान का संचालन स्थानीय सफेदपोश, ठेकेदारों और विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से होता रहा है। खनन विभाग ने अब पट्टाधारकों के खिलाफ रिपोर्ट तैयार की है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि 52 घंटे पहले जब मजदूर जिंदा दबे थे, तब विभाग की यह सक्रियता कहां गई थी। लगातार 52 घंटे के रेस्क्यू में अब तक सात शव बरामद किए जा चुके हैं, अभी भी रेस्कयू अभियान जारी है।
यह हादसा सिर्फ एक त्रासदी नहीं बल्कि सिस्टम द्वारा की गई सुनियोजित हत्या है -
खदान के बाहर खड़े हर व्यक्ति की आंखों में एक ही सवाल है कि अगर प्रशासन समय पर निगरानी करता, कुछ जाने बच सकती थीं। प्रशासन की तरफ से जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन ग्रामीणों में भरोसा कम है। लोगों का कहना है कि इस हादसे ने सिर्फ मिट्टी नहीं खोली-बल्कि पूरे सिस्टम की पोल खोलकर रख दी है। मलबे में दबे बाकी मजदूरों के लिए इंतजार जारी है और ऊपर जमीन पर उनके परिवारों के लिए यह हादसा सिर्फ एक त्रासदी नहीं, बल्कि एक सिस्टम द्वारा की गई सुनियोजित हत्या है।
मुआवजे की राशि से सरकार का पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाने का प्रयास -
खनन त्रासदी के बाद मंत्रियों के जिले में आने का सिलसिला लगातार जारी है, जिन्होंने मुआवजे के राशि की घोषणा कर पीड़ितों के जख्म पर मरहम लगाने का प्रयास तो किया लेकिन ज़ब तक दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही नहीं होती तब तक सही मायने में पीड़ित परिवारों को न्याय नहीं मिलेगा।



