Sonbhadra News : एकमुश्त मासिक मानदेय सहित विभिन्न मांगों को लेकर आशाओं ने किया प्रदर्शन
आज कलेक्ट्रेट परिसर में आशा कार्यकर्ताओं और संगिनियों ने ऑल इंडिया आशा बहू कार्यकर्ती कल्याण सेवा समिति के बैनर तले एकमुश्त मासिक मानदेय और बकाया भुगतान सहित विभिन्न मांगों को लेकर जोरदार प्रदर्शन....

कलेक्ट्रेट परिसर में मांगों को लेकर धरनारत आशाएं.....
sonbhadra
7:04 PM, November 8, 2025
आनन्द कुमार चौबे (संवाददाता)
सोनभद्र । आज कलेक्ट्रेट परिसर में आशा कार्यकर्ताओं और संगिनियों ने ऑल इंडिया आशा बहू कार्यकर्ती कल्याण सेवा समिति के बैनर तले एकमुश्त मासिक मानदेय और बकाया भुगतान सहित विभिन्न मांगों को लेकर जोरदार प्रदर्शन किया। उन्होंने सरकार और स्वास्थ्य विभाग पर शोषण का आरोप लगाते हुए मांगें पुरी नहीं होने तक सम्पूर्ण कार्य बहिष्कार की चेतावनी दी।
ऑल इंडिया आशा बहू कार्यकर्ती कल्याण सेवा समिति की जिलाध्यक्ष मंजूलता मौर्या ने बताया कि "2006 से अब तक 18 वर्षों से वह आशा और आशा संगिनी फैसिलिटेटर ने लगातार स्वास्थ्य विभाग सभी कार्यो को ईमानदारीपूर्वक करते आ रहे है। आशाओं ने जहाँ अपने कार्य से मातृ दर से शिशु मृत्यु दर में कमी लाया, वहीं पोलियो मुक्त भारत को भी आशाओं के सहयोग से ही सफल बनाया जा सका। जबकि कोविड-19 जैसे महामारी में उन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने कार्य को ईमानदारीपूर्वक योगदान दिया, फिर भी प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री भी उनके साथ सौतेला व्यवहार कर रहे हैं। अन्य प्रदेशों की तरह यूपी की समस्त आशा एवं आशा (संगिनी फैसिलिटेटर) को एक निश्चित मानदेय/वेतन समस्त कार्यों पर प्रोत्साहन राशि, टीए, डीए प्रदान किया जाय, राज्य कर्मचारी का दर्जा दिया जाय, आशाओं का दुर्घटना होने पर बीस लाख रूपये का मुआवजा दिया जाय तथा यदि कारणवश आशा का मृत्यु होती है तो आशा के घर का ही सदस्य के लिए वरियता दिया जाय। ज़ब तक हमारी मांगें नहीं मानी जाएगी तब तक कार्य बहिष्कार जारी रहेगा।"
सरकार कर रही आशाओं की उपेक्षा -
वक्ताओं ने कहा कि "शासन-प्रशासन वर्षों से आशा कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर रहा है। उन्हें कई विभागों के अतिरिक्त कार्यों में लगाया जाता है, लेकिन उसके अनुरूप भुगतान नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि टीकाकरण, मातृ-शिशु देखभाल, जनसंख्या नियंत्रण, सर्वेक्षण और गांव-गांव अभियान जैसे तमाम कार्य कराए जाते हैं, जिसके लिए मानदेय के रूप से प्रतिमाह सिर्फ 2000 रुपये दिया जाता है, जो इस मंहगाई के जमाने में नाकाफी है।"
काम में कई गुना बढ़ोत्तरी, लेकिन पैसे और इंसेंटिव वहीं सालों पुराने -
आशाएं बताती हैं कि "स्वास्थ्य विभाग की तमाम योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर आम जनता के बीच लागू करने का महत्वपूर्ण काम आशा वर्कर्स करती हैं। यहां तक कि कोरोना के कठिन समय में भी इन वर्कर्स ने अपनी जान जोखिम में डाल कर अपनी सेवाएं जारी रखी लेकिन सरकार अब कई अन्य विभागों का भी काम जनहित के नाम पर इन्हीं आशा वर्कर्स से करवाना चाहती है और इसके बदले कोई मानदेय बढ़ोतरी नहीं कर रही। यानी बीते 18वर्षों में सरकार ने काम तो कई गुना बढ़ा दिया है, लेकिन पैसे और इंसेंटिव वहीं 18 वर्ष पुराने वाले ही दिए जा रहे हैं।"
आशाएं सिर्फ काम के लिए रह गई है प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ -
आशाओं ने आगे बताया कि "आशा वर्कर्स देश में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा की रीढ़ हैं लेकिन सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये ने हम आशाओं की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी है। कोरोना महामारी में हमें फ्रंटलाइन वर्कर्स के रूप में पेश कर दिया गया लेकिन सरकार हमें जॉब की गारंटी तक नहीं दे पा रही। उल्टा अपनी मांगों को लेकर आवाज उठाने पर हमें सरकारी कार्य में बाधा डालने का आरोप लगाकर काम से निकालने की धमकी ज़रूर दी जाती है।"
ये रहे मौजूद -
इस दौरान राधिका देवी, सुशीला देवी, रेखा श्रेष्ठ, रीना देवी, गीता देवी, मुन्नी देवी, मनोरमा देवी, शांति देवी, रेखा देवी, चिंता देवी, आशा शुक्ला, अनीता सिंह, विमला, शकुंतला, पूनम, उर्मिला, ललिता देवी, रिजवाना, बिंदु देवी,



