उत्तरप्रदेशवाराणसी

मुख्यमंत्री ने संत शिरोमणि सद्गुरू रविदास के दरबार में टेका मत्था

■ सद्गुरु संत रविदास जी की 646वीं जयंती पर सीएम पहुंचे संत शिरोमणि के दरबार

■ मुख्यमंत्री ने सभी श्रद्धालुओं, भक्तगणों को जयंती पर दी लख लख बधाइयां

■ कहा- भक्ति के साथ कर्म साधना को सद्गुरू ने सदैव महत्व दिया

■ सीएम योगी ने प्रधानमंत्री के शुभकामना संदेश को भी पढ़ा

वाराणसी । संत शिरोमणि सद्गुरू रविदास जी की 646वीं जयंती पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां सीर गोवर्धनपुर स्थित मंदिर में मत्था टेका। मुख्यमंत्री ने सभी भक्तगणों और श्रद्धालुओं को सद्गुरू रविदास जी की जयंती के अवसर पर लख लख बधाइयां दी। उन्होंने कहा कि भक्ति के साथ साथ कर्मसाधना को सद्गुरू ने सदैव महत्व दिया। मन चंगा तो कठौती में गंगा कह के उन्होंने समाज को कर्म का बड़ा ही व्यापक संदेश दिया। मुख्यमंत्री ने इस दौरान सद्गुरू निरंजन दास से मुलाकात करके उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से भेजा गया शुभकामना संदेश पढ़कर सुनाया।

मुख्यमंत्री ने अपने शुभकामना संदेश में कहा कि आज बड़ा पावन दिन है। आज से 646 वर्ष पूर्व काशी की इस पावन धरा पर एक दिव्य ज्योति का प्रकटीकरण हुआ, जिन्होंने तत्कालीन भक्तिमार्ग के प्रख्यात संत सद्गुरु रामानंद जी महाराज के सानिध्य में अपनी तपस्या और साधना के माध्यम से सिद्धि प्राप्त की थी। आज उसी सिद्धि के प्रसाद स्वरूप मानवता के कल्याण का मार्ग किस तरह प्रशस्त हो रहा है, ये हम सबको स्पष्ट दिखाई देता है। मैं आज सबसे पहले केंद्र और राज्य सरकार की ओर से उपस्थित सभी श्रद्धालुओं, भक्तों और सीर गोवर्धन से जुड़े सभी शुभचिंतको के प्रति लख लख बधाई देता हूं। हम सब जानते हैं कि भक्ति के साथ साथ कर्मसाधना को सद्गुरु ने सदैव महत्व दिया। उन्होंने मन चंगा तो कठौती में गंगा कह के समाज को कर्म का संदेश दिया। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से भेजा गया संदेश पढ़ा।

प्रधानमंत्री का संदेश

संत रविदास जी की 646वीं जयंती पर समस्त देशवासियों की ओर से उनको श्रद्धापूर्वक कोटि कोटि नमन, इस अवसर पर आयोजित किये जा रहे कार्यक्रम के बारे में जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई है। संत रविदास जी के विचारों का विस्तार असीम है। उनके दर्शन और विचार सदैव प्रासंगिक हैं। उन्होंने ऐसे समाज की कल्पना की थी, जहां किसी भी प्रकार का भेदभाव ना हो। सामाजिक सुधार और समरसता के लिए वह आजीवन प्रयत्नशील रहे। वे कहते थे ”ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिले सभन को अन्न, छोट बड़ो सब समान बसे, रविदास रहे प्रसन्न।” समाज में सकारात्मक परिवर्तन के लिए उन्होंने सौहार्द और भाईचारे की भावना पर बल दिया है। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के जिस मंत्र के साथ हम आगे बढ़े रहे हैं, उसमें संत रविदास जी के न्याय, समानता और सेवा पर आधारित कालजयी विचारों का भाव पूरी तरह से समाहित है। आजादी के अमृत कालखंड में संत रविदास जी के मूल्यों से प्रेरणा लेकर एक सशक्त समावेशी और भव्य राष्ट्र के निर्माण कि दिशा में हम तेजी से अग्रसर हैं। सामूहिकता के सामर्थ्य के साथ उनके दिखाए गये रास्ते पर चलकर हम 21वीं सदी में भारत को निश्चय ही नई ऊंचाइयों पर लेकर जाएंगे।

सम्बन्धित ख़बरें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button