आनंद चौबे/सजंय केसरी/घनश्याम पांडेय (संवाददाता)
सोनभद्र । तीसरी लहर आने की संभावना के बीच सरकार सरकारी स्कूल खोलने की तैयारी कर रही है । अब तक सरकारी स्कूलों के बच्चों को ऑनलाइन या फिर मोहल्ला क्लिनिक के माध्यम से पढ़ाया जाता रहा है । चाहे सरकार हो या फिर प्रशासन इस तरह की पढ़ाई को बेहतर बताते रहे हैं ।
इसकी पड़ताल करने जब जनपद न्यूज Live की टीम कुछ गांव में पहुंची तो गांव की गलियों में चलने वाला मोहल्ला स्कूल तो नहीं दिखा बल्कि बच्चे खेलते जरूर दिख गए। जब हमने उनसे कुछ सवाल किए तो वे किसी सवाल का जबाब नहीं दे सके, बताया कि सब कुछ भूल गया।
तरावां गांव की अनिता कक्षा 5 की छात्रा है लेकिन उसे न तो गिनती आती है और न पहाड़ा, आलम यह है कि अनिता तो खुद के स्कूल का नाम भी भूल चुकी है।
उसी गांव की कक्षा 6 में पढ़ने वाली रिंकी का भी यही हाल है, लगभग एक साल से बंद चल रहे स्कूल के कारण वह सब कुछ भूल चुकी है।
ऐसा नहीं कि यह हाल किसी एक गांव का है, बल्कि पूरे जनपद में ऐसा नजारा देखने को मिल जाएगा।
बच्चों की दशा देखकर पिता भी अब स्कूल खोलने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि बच्चे जो भी सीखे थे वह भूल चुके हैं। ऐसे में यदि स्कूल नहीँ खुला तो उनके बच्चों की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी।
योगी सरकार पूरे लॉक डाउन में स्कूलों का कायाकल्प कर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है वहीं बच्चों का कायाकल्प कैसे होगा इसकी चिंता किसी को नहीं है। पहले इसी सरकारी स्कूलों से पढ़कर बच्चे कलेक्टर तक बने हैं मगर आज यदि शिक्षामित्र नहीं बन पा रहे तो आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है?
बड़ा सवाल तो यह भी है कि सरकारी स्कूलों में तैनात टीचर भले ही एमए-बीएड, बीटीसी व टेट हों मगर खुद पर उनको कितना भरोसा है यह तो इस बात से साफ हो जाता है कि वे अपने बच्चों को आने स्कूल में दाखिला दिलवाने के बजाय किसी कान्वेंट में डालना ज्यादा सुरक्षित व गौरवान्वित महसूस करते हैं।
पढोगे लिखोगे बनोगे नबाब, खेलोगे कूदोगे होगे खराब… ओलंपिक में भारत के प्रदर्शन के बाद शायद अब हर मां-बाप की धारणा जरूर बदली होगी लेकिन सवाल उठता है कि ग्रामीण इलाकों के बच्चे जो खेल, खेल रहे हैं उससे वे कुछ भी बन पाएंगे। ऐसे में सरकार को चाहिए कि सरकारी स्कूल के बच्चों को पढ़ा लिखाकर नबाब जरूर बनाए।