संजीव कुमार पांडेय (संवाददाता)
मिर्जापुर। विन्ध्याचल धाम में मंगला आरती के साथ वासंतिक नवरात्रि मेला आरम्भ हो गया। माता के धाम में दूर दराज से भक्त हाजिरी लगाने पहुंचे है। विंध्य पर्वत पर विराजमान माता विंध्यवासिनी आराधना कर भक्त मनो वांछित वरदान प्राप्त करते हैं। नवरात्रि के पहले दिन श्रद्धालुओं ने पूरी आस्था के साथ आदिशक्ति मां विंध्यवासिनी का दर्शन पूजन करने के लिए उमड़ पड़े है। मां का दर्शन पूजन कर भक्त विभोर रहे हैं।अनादिकाल से भक्तों के लिए विंध्यवासिनी माता का धाम आस्था का केंद्र रहा है। विन्ध्य पर्वत व पतित पावनी मां भागीरथी के संगम तट पर श्रीयंत्र पर मां विंध्यवासिनी विराजमान है। माता के धाम को देशी विदेशी फूलों से सजाया गया है।
नवरात्रि के प्रथम दिन शैलपुत्री के रूप में देवी का दर्शन पूजन किया जाता है। शैल का अर्थ पहाड़ होता है। कथाओं के अनुसार पार्वती पहाड़ो के राजा हिमालय की पुत्री थी। पर्वत राज हिमालय की पुत्री को शैलपुत्री भी कहा जाता है। उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल है। भारत के मानक समय पर बिंदु स्थल विराजमान मां को बिंदुवासिनी भी कहा जाता है। प्रत्येक प्राणी को सदमार्ग पर प्रेरित वाली मां शैलपुत्री सभी के लिए आराध्य है। घर के ईशान कोंण में कलश स्थापना के साथ ही माता भक्त साधना में जुट गए हैं। नौ दिन मां दुर्गा मन, वचन, कर्म सहित इस शरीर के नौ द्वार से मां सभी भक्तों की मनोकामना को पूरा करती है। भक्त को जिस – जिस वस्तुओं की जरूरत होती है वह सभी माता रानी प्रदान करती है । माता के धाम में पहुंचे भक्त निराली छटा और दिव्य दर्शन पाकर विभोर रहे।
पुरोहित अनुपम महाराज ने बताया कि माता रानी का नवरात्रि में पूजन अर्चन करने से भक्तों की सारी मनोकामना पूर्ण होती हैं। पूरे ब्रह्मांड में विंध्य क्षेत्र जैसा दूसरा क्षेत्र नहीं है। भक्त जिस कामना के साथ पूजन अर्चन करता है। माता विंध्यवासिनी की आराधना करने से उसे वह सब प्राप्त होता है।